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Rahat Indori Shayari Lyrics
झुकने से रिश्ता गहरा हो तो झुक जावो,
पर हर बार आपको ही झुकना पड़े, “तो रुक जावो”।
रास्ते में फिर वही पैरों का चक्कर आ गया,
जनवरी गुज़रा नहीं था की दिसंबर आ गया!
ये शरारत है, सियासत है या साजिश है कोई,
शाख पर फल आए..इस से पहले पत्थर आ गया!
अपने दरवाज़े पर मेने पहले खुद आवाज़ दी,
और फिर कुछ देर में खुद ही निकल कर आ गया!
मेने कुछ पानी बचा रखा था अपनी आँख में,
की समंदर अपने सूखे होंठ लेकर आ गया||
मैं आख़िर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता,
यहाँ हर एक मौसम को गुज़र जाने की जल्दी थ।
Rahat Indori Shayari
मेरे हुजरे में नहीं, और कंही पर रख दो,
आसमां लाए हो, ले आओ, ज़मीन पर रख दो
अरे यार कहां ढूंढने जाओगे हमारे कातिल
आप तो कत्ल का इल्ज़ाम हमी पर रख दो
अपनी रूह के छालों का कुछ हिसाब करूँ,
में चाहता था चिरागों को आफ़ताब करूँ!
खुदा से मुझको इजाजत अगर कभी मिल जाए,
तो शहर भर के खुदाओं को बेनकाब करूँ?
है मेरे चरों तरफ भीड़ गूंगे-बहरों की,
किसे खतिफ बनाऊं किसे ख़िताब करूं!
उस आदमी को बस एक धुन सवार रहती है,
बहुत हंसी है दुनिया इसे खराब करूँ
मैं करवटों के नए साये पर लिखूं शब्द भर
ये इश्क़ है तो कहाँ से नदियां साफ़ करूँ
-Rahat Indori Shayari Lyrics
खाक से बड़कर कोई दौलत नहीं होती,
छोटी-मोटी बात पे हिजरत नहीं होती,
पहले दीप जले तो चर्चे होते थे,
अब शहर जले तो हैरत नहीं होती।
सूरज, सितारे, चाँद मेरे साथ में रहे,
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहें,
शाखों से टूट जाए वो पत्ते नहीं हैं हम,
आंधी से कोई कह दे की औकात मे रहें।
Rahat Indori Shayri
तूफ़ानों से आंख मिलाओ, सैलाबों पे वार करो
मल्लाह का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो
फूलों की दुकानें खोलो, ख़ुशबू का व्यापार करो
इश्क़ खता है, तो ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो
–Rahat Indori Shayari Lyrics
इन रातों से अपना रिश्ता जाने कैसा रिश्ता है,
नींदें कमरों में जागी हैं ख़्वाब छतों पर बिखरे हैं।
मोड़ होता है जवानी का सँभलने के लिए,
और सब लोग यहीं आ के फिसलते क्यूं हैं।
Rahat Indori Best Shayari
हम अपनी जान के दुश्मन को अपनी जान कहते है
मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिन्दुस्तान कहते हैं
जो ये दीवार का सुराख है साज़िश है लोगों की,
मगर हम इसको अपने घर का रोशनदान कहते हैं
फूलों की दुकाने खोलो , खुसबू का व्यापार करो,
इश्क़ खता है तो, इसे एक बार नहीं सौ बार कर।
-Rahat Indori Shayari Lyrics
Rahat Indori Ki Shayari
जुबां तो खोल, नज़र तो मिला , जवाब तो दे,
मै कितनी बार लूटा हूँ, मुझे हिसाब तो दे,
तेरे बदन की लिखावट में है उतार-चढाव
मैं तुझको कैसे पढ़ूँगा, मुझे किताब तो दे।
-Rahat Indori Shayari Lyrics
कल तक दर दर फिरने वाले,
घर के अंदर बैठे हैं और
बेचारे घर के मालिक, दरवाजे पर बैठे हैं,
खुल जा सिम सिम, याद है किसको,
कौन कहे और कौन सुने?
गूंगे बाहर सीख रहे हैं, बहरे अंदर बैठे हैं
यूं तो हर फूलों पे लिखा है की तोडो मत,
दिल मचलता है तो कहता है, “छोड़ो मत”।
रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है,
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है।
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थक गया हूँ तेरी नौकरी से जिंदगी,
मुनासिब होगा अगर, मेरा हिसाब कर दे ।
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
राह के पत्थर से बढ़ कर कुछ नहीं हैं मंज़िलें
रास्ते आवाज़ देते हैं सफ़र जारी रखो
एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे दोस्तो
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो
आते जाते पल ये कहते हैं हमारे कान में
कूच का ऐलान होने को है तय्यारी रखो
ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे
नींद रखो या न रखो ख़्वाब मे यारी रखो
ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का बदन
दोस्तो मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो
ले तो आए शाइरी बाज़ार में ‘राहत’ मियाँ
क्या ज़रूरी है कि लहजे को भी बाज़ारी रखो
-Rahat Indori Shayari Lyrics
Rahat Indori Poetry
बुलाती है मगर जाने का नहीं
बुलाती है मगर जाने का नहीं
ये दुनिया है इधर जाने का नहीं
मेरे बेटे किसी से इश्क़ कर
मगर हद से गुज़र जाने का नहीं
ज़मीं भी सर पे रखनी हो तो रखो
चले हो तो ठहर जाने का नहीं
सितारे नोच कर ले जाऊंगा
मैं खाली हाथ घर जाने का नहीं
वबा फैली हुई है हर तरफ
अभी माहौल मर जाने का नहीं
वो गर्दन नापता है नाप ले
मगर जालिम से डर जाने का नहीं
-Rahat Indori Shayari Lyrics
कहीं अकेले में मिल कर झिंझोड़ दूँगा उसे
जहाँ जहाँ से वो टूटा है जोड़ दूँगा उसे
मुझे वो छोड़ गया ये कमाल है उस का
इरादा मैं ने किया था कि छोड़ दूँगा उसे
बदन चुरा के वो चलता है मुझ से शीशा-बदन
उसे ये डर है कि मैं तोड़ फोड़ दूँगा उसे
पसीने बाँटता फिरता है हर तरफ़ सूरज
कभी जो हाथ लगा तो निचोड़ दूँगा उसे
मज़ा चखा के ही माना हूँ मैं भी दुनिया को
समझ रही थी कि ऐसे ही छोड़ दूँगा उसे
हौसले ज़िंदगी के देखते हैं,
चलिये कुछ रोज जी के देखते हैं,
नींद पिछली सदी की जख्मी है,
ख्वाब अगली सदी के देखते हैं।
तेरी हर बात मोहब्बत में गवारा कर के
दिल के बाज़ार में बैठे हैं ख़सारा कर के
आते जाते हैं कई रंग मिरे चेहरे पर
लोग लेते हैं मज़ा ज़िक्र तुम्हारा कर के
एक चिंगारी नज़र आई थी बस्ती में उसे
वो अलग हट गया आँधी को इशारा कर के
आसमानों की तरफ़ फेंक दिया है मैं ने
चंद मिट्टी के चराग़ों को सितारा कर के
मैं वो दरिया हूँ कि हर बूँद भँवर है जिस की
तुम ने अच्छा ही किया मुझ से किनारा कर के
मुंतज़िर हूँ कि सितारों की ज़रा आँख लगे
चाँद को छत पुर बुला लूँगा इशारा कर के
-Rahat Indori Shayari Lyrics
छु गया जब कभी खयाल तेरा,
दिल मेरा देर तक धड़कता राहा,
कल तेरा जिक्र छिड़ गया था घर में,
और घर देर तक महकता राहा।
इश्क़ में जीत के आने के लिए काफी हूं,
मैं निहत्था ही जमाने के लिए काफी हूं,
मेरी हर हकीकत को मेरी ख़ाक समझने वाले..
मैं तेरी नींद उड़ाने के लिए हीं काफी हूं।।
इश्क ने गूथें थे जो गजरे नुकीले हो गए
तेरे हाथों में तो ये कंगन भी ढीले हो गए
फूल बेचारे अकेले रह गए है शाख पर
गाँव की सब तितलियों के हाथ पीले हो गए
ये सहारा जो नहीं हो तो परेशां हो जायें ,
मुश्किलें जान ही ले लें अगर आसां हो जायें…
ये जो कुछ लोग फरिश्तों से बने फिरते हैं,
मेरे हत्थे कभी चढ़ जाएं तो इंसान हो जाएं।।
जवान आँखों के जुगनू चमक रहे होंगे
अब अपने गाँव में अमरुद पक रहे होंगे
भुलादे मुझको मगर,
मेरी उंगलियों के निशान
तेरे बदन पे अभी तक चमक रहे होंगे
घर से ये सोच के निकला हूँ कि मर जाना है,
अब कोई राह दिखा दे कि किधर जाना है ,
जिस्म से साथ निभाने की मत उम्मीद रखो ,
इस मुसाफ़िर को तो रस्ते में ठहर जाना है।।
अंदर का ज़हर चूम लिया धुल के आ गए
कितने शरीफ़ लोग थे सब खुल के आ गए
फैसला जो कुछ भी हो,
हमें मंजूर होना चाहिए ,
जंग हो या इश्क हो, भरपूर होना चाहिए ,
भूलना भी हैं, जरुरी याद रखने के लिए ,
पास रहना है, तो थोडा दूर होना चाहिए।।
आग के पास कभी मोम को लाकर देखूं
हो इज़ाज़त तो तुझे हाथ लगाकर देखूं
दिल का मंदिर बड़ा वीरान नज़र आता है
सोचता हूँ तेरी तस्वीर लगाकर देखूं
हर एक हर्फ़ का अंदाज़ बदल रखा हैं,
आज से हमने तेरा नाम ग़ज़ल रखा हैं,
मैंने शाहों की मोहब्बत का भरम तोड़ दिया,
मेरे कमरे में भी एक “ताजमहल” रखा हैं
अब ना मैं हूँ, ना बाकी हैं ज़माने मेरे,
फिर भी मशहूर हैं शहरों में फ़साने मेरे,
ज़िन्दगी है तो नए ज़ख्म भी लग जाएंगे,
अब भी बाकी हैं कई दोस्त पुराने मेरे।
हालात ने चेहरे की चमक छिन ली वरना ,
दो चार बर्ष में बुढ़ापा नही आता ,
इस तरह मसायल के जहन्नुम में जला हूँ।
अब कोई भी मौसम में पशीना नहीं आता।
चेहरों के लिए आईने कुर्बान किये हैं,
इस शौक में अपने बड़े नुकसान किये हैं,
महफ़िल में मुझे गालियाँ देकर है बहुत खुश,
जिस शख्स पर मैंने बड़े एहसान किये है।
अजीब लोग हैं मेरी तलाश में मुझको,
वहाँ पर ढूंढ रहे हैं जहाँ नहीं हूँ मैं,
मैं आईनों से तो मायूस लौट आया था,
मगर किसी ने बताया बहुत हसीं हूँ मैं।
अजनबी ख़्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ ,
ऐसे ज़िद्दी हैं परिंदे कि उड़ा भी न सकूँ ,
फूँक डालूँगा किसी रोज़ मैं दिल की दुनिया ,
ये तेरा ख़त तो नहीं है कि जला भी न सकूँ।
रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है,
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है,
रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं,
रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है।
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