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Poetry In Hindi


Poetry In Hindi

अच्छा लगता है

वो एहसास, मुझे अच्छा लगता है

बेखयाली के लम्हों में,
यूँ ही तेरा खयाल आया जाने का
वो एहसास, मुझे अच्छा लगता है।

घिर जाऊं जो सावन की घटाओं से,
काश तेरे साथ होने का
वो एहसास, मुझे अच्छा लगता है।

नींद ना आये जब रातों में,
तो तेरी तस्वीर देखकर मुस्कुराने का
वो एहसास, मुझे अच्छा लगता है।

गर अधूरा से महसूस हो खुदमे,
तो तेरी दोस्ती निभाने का
वो एहसास, मुझे अच्छा लगता है।

गर रूठ जाऊं मैं कभी हालातों से,
तो तेरा मुझे कसकर गले लगाने का
वो एहसास, मुझे अच्छा लगता है।

रहते तो बहुत दूर हो हमसे,
पर पास ना होकर भी पास होने का
वो एहसास, मुझे अच्छा लगता है।।


लगता है उससे मोहब्बत होने लगी है

सूरत ना देखी मैंने उसकी,

मूरत फिर भी उसकी बनने लगी है,

दिन को चैन नहीं आता,

और रातों की नींद उड़ने लगी है,

लगता है उससे मोहब्बत होने लगी है,

उसकी यादों में, आँखों से नीर बहते है,

अब तो आँखों को आँसू से मोहब्बत होने लगी है,

कलम लिखना चाहती है,

केवल तुम्हारे बारे में,

और बातें मेरी कविताओं में ढलने लगी है,

लगता है उससे मोहब्बत होने लगी है,

उसकी यादों में, रातें गुजार देता हूँ,

अपनी ही बातों में, खुद को सँवार देता हूँ,

सुनसान रातों में, मेरी बातें गहराई में उतरने लगी हैं,

अब तो मेरे दिल की तन्हाई मोहब्बत में बदलने लगी है,

लगता है उससे मोहब्बत होने लगी है,

सुबह सूरज की रोशनी भी अधूरी सी लगती है,

बाज़ार की भरी सड़के भी सुनी सी लगती है,

उसके आने की ये आँखें राह देखने लगी हैं,

अब तो माह भी सालों की राह देखने लगी है,

लगता है उससे मोहब्बत होने लगी है,

उसके चेहरे की चमक सादी लगती है,

चाँद पूरा निकलता है पर रोशनी आधी लगती है,

बारिश की बूँदें भी अब मुझे भिगोने लगी हैं,

अब तो दिल की धड़कन भी यादों को पिरोने लगी है,

लगता है उससे मोहब्बत होने लगी है,

अभी भी घर की चौखट पर, उसकी राह तके बैठा हूँ,

सुबह से शाम और शाम से सुबह, उसकी राह में गुज़ार देता हूँ,

कब आओगी ये मेरी तन्हाई कहने लगी है,

तन्हाई की बातें दिल को झूठी लगने लगी हैं,

लगता है उससे मोहब्बत होने लगी है

-Poetry In Hindi

देखा जब उसे

देखा जब उसे …

दिल में आग लग गयी ….

वक्त थम गया और धडकन रुक गयी …

पास जाकर देखा तो चांद सी खिल गयी …

कुर्ता जॅकेट में अप्सरा सी मिल गयी ….

क़ातिल निगाहों में चमक उठी थी …

उसकी हर मुस्कुराहट पे सांसे रुकी थी …

उसकी हर अदाओं पे हम फिदा हो गए …

जन्नत सी दिख गयी और हम वफा हो गए ….


ये है ज़िन्दगी

ज़िन्दगी ….!!!!!

यहां खुशियों का दरबार भी है,
और दुःख का इज़हार भी….!

यहां मुस्कराहट का मौका भी है,
और आंसुओं की वजह भी….!

यहां दिलों में जन्नत है,
पर वक़्त के दरमियान जहन्नम भी….!!!

यहां मुस्कराहट का मौका भी है,
और आंसुओं की वजह भी….!

ये है बड़ी प्यारी,
पर लोगों के नज़र की मोहताज भी….!

की जिसके नज़रों को खूबसूरत लगे,
उसके लिए जन्नत भी, मुस्कुराने की वजह भी…!

और जिसके नज़रों को बेदर्द लगे,
उसके लिए जहन्नुम भी, आंसुओं की वजह भी…!

ये है ज़िन्दगी…….


एक इंसान

इंसानो का इंसानो से इंसानियत का वास्ता ही कुछ और है,
हर एक इंसान का इस दुनिया में रास्ता ही कुछ और है,

मूर्खो से मूर्खो की बाते मूर्खो को समझ न आयी
एक मुर्ख खुसिया के बोला क्या तू समझा मेरे भाई?

अन्धो से अन्धो का तो अजीब ही नाता है,
हर अँधा दूसरे अंधे के नैनो की गहराही में खो जाता है !

ऐसे इस घमासान में बेहरे भी कुछ कम नहीं इतराते ,
समझे सुने मुमकिन नहीं पर गर्दन जरूर हिलाते।

गूंगे न जाने शब्दों से रिश्ता कैसे निभाते है,
केवल होठों को मिटमिट्याते हुए कैसे वे बतियाते है?

कर से अपंग भी लालसा में झूल जाते है,
हाय रे ये आलसी जानवर बिस्तर न छोड़ पाते है!

सयाने इतराते कहते लंगड़े घोड़े पर डाव नहीं लगाते,
और दूसरे ही मौके पर दुसरो के तरक्की में रोड़ा अडकते।

किस्मत के मारो का तो क्या कहना, ये दिमाग से पैदल होते है,
सामर्थ्यवान इस देश की उपज है मानो सारा कुछ यही सहते है।

इससे तो अच्छा सचमें इनके आँख, कान, जबान, पैर और हाथ न होते,
दिमाग तो फिर भी ठीक था पर दिल को मन में संजोते,

ऐसे इस इंसान का फिर भी जग में उद्धार जरूर होता,
इंसान फिर इंसानियत से कभी वास्ता न खोता।


1990’s Love Shayari Poem

अपना इश्क़ 1990 वाला चाहता हूँ,

टेक्स्ट, कॉल से दूर,
ख़तों पर रहना चाहता हूँ,

ये बाबू शोना छोड़के,
उसे प्रेमिका कहना चाहता हूँ,

जब मिले हम अचानक से,
तो उसकी खुशी देखना चाहता हूँ ,

जब आये सुखाने कपड़े छत पर,
तो चोरी चोरी मिलना चाहता हूँ,

जो पापा और भाई के आने से डरती हो,
ऐसी मेहबूबा चाहता हूँ,

हॉं, मैं आज भी मोहब्बत
पुराने जमाने वाली चाहता हूँ ।


मैंने कोरोना का रोना देखा है

मैंने कोरोना का रोना देखा है!
और उम्मीदों का खोना देखा है!!

लाचार मजदूरों को रोते देखा है!
गिरते पड़ते चलते और सोते देखा है!

पिता को सूनी आंखों से तड़पते देखा है!!
तो मां की गोद में बच्चे को मरते देखा है!

गरीबों का खुलेआम रोष देखा है!!
तो मध्यमवर्ग का मौन आक्रोश देखा है!

पीएम केयर के लिए भीख की शैली देखी है!
तो उसी पैसे से वर्चुअल रैली देखी है!!

गरीबों को अस्पतालों में लुटते देखा है! !
तो निर्दोषों को बेवजह पिटते देखा है!

अल्लाह भगवान की दुकानों का बंद भी होना देखा है!
तो रोना रोती सरकारों का अंत भी होना देखा है!!


अनोखा मौन प्रेम

एक थी गुड़िया प्यारी सी, एक था गुड्डा भोला सा
वो समय पुराना, माहौल जरा कुछ दबा ढँका था
दोनो संकोची गुड्डा गुड़िया, दोनों बेहद मेधावी थे
संग कॉलेज में पढ़ते थे पर कभी बात न करते थे
टुकुर टुकुर बस एक दूजे को यूँ ही देखा करते थे

दिन थे पखेरू कहाँ ठहरते, तेज गति उड़ जाते थे
कॉलेज के वो स्वप्निल दिन, पंख लगाकर उड़ते थे
गुड्डा गुड़िया बहुत मेहनती, अति लगन से पढ़ते थे
कॉलेज के दिन बीत गए थे गुड्डा गुड़िया बिछुड़े थे
स्तब्ध हृदय से मौन विदा ले आँसू थामे निकले थे

अपनी मेधा के दम पर सम्मानित पद पर पहुँचे थे
गुड्डा गुड़िया नवजीवन के प्रगति पथ पर उलझे थे
अलग अलग शहरों में दोनों नई राह पर चलते थे
कभी कभी फुर्सत के पल में याद पुरानी करते थे
प्रथम प्रेम की मौन सहमति विस्मृत न कर पाए थे

मौसम-मौसम बीत चले थे, नया ज़माना आया था
कई-कई संचार के साधन, मोबाइल भी आया था
अप्रत्याशित एक रोज़, एक नया सवेरा आया था
किसीने गुड्डा गुड़िया को मित्रों के ग्रुप में जोड़ा था
चरम कौतुहल से दोनों ने मोबाइल नंबर पाया था

संकोच छोड़कर एक रोज़ गुड्डे ने फोन लगाया था
बातों में दोनों ने ही खुशियों का खजाना पाया था
रोज़ ढेर सी बातों में समय भी कम पड़ जाता था
एक दूजे का संग साथ दोनों के मन को भाता था
एक दूजे से मिलने का मन दोनों को ही बेहद था

ग्रुप के सारे मित्रों ने अब मिलन सम्मेलन रखा था
अपने उसी शहर में जाना सबके मन को छूता था
तीस बरस के इंतज़ार का अंत जल्द ही होना था
गुड्डा गुड़िया के पाँव भी अब ज़मीन से ऊपर थे
सम्मेलन में जाने की नित उल्टी गिनती करते थे

बहुप्रतीक्षित वो दिन था, समय भी जैसे ठहरा था
तीस बरस के बाद दोनों ने, एक दूजे को देखा था
मित्रगणों के साथ उन्होंने खोया बचपन पाया था
चुहल ठहाके और गप्पों में मीठा समय गुजारा था
गीत ग़ज़ल के समारोह में बढ़कर गाना गाया था

गाने के उस समारोह में गुड्डा गुड़िया खूब मगन थे
तभी अचानक एक मित्र ने गुड़िया को बुलाया था
मित्र के कहने पर उसने एक युगल गाना गाया था
मित्र के संग गुड़िया का गीत गुड्डा सह न पाया था
दुखी हृदय से वो बेचारा समारोह से चला गया था

गीत ख़तम कर गुड़िया ने गुड्डे को हाॅल में ढूँढा था
उसे न पाकर उसने उसको तुरंत फोन लगाया था
फोन पर गुड्डे ने अपनी तबियत का रोना रोया था
लेकिन गुड़िया को गुड्डे की हालत का अंदाजा था
झटपट से जाकर गुड़िया ने गुड्डे को समझाया था

अधिकार से उसने गुड्डे को समारोह में खींचा था
नैनों की गागर ने उस पल प्रेम नीर छलकाया था
बिना कहे ही दोनों ने दोनों के मन को जाना था
बचपन का वो मौन प्रेम अभी दिलों में बाकी था
कैसा वो आकर्षण था और जाने कैसा बंधन था

प्रेम अनोखा, अपरिभाषित, अकथ, गूढ़ पहेली है
देश काल और जन्म से परे, नहीं उम्र का सेवक है
बरस हज़ारों गुज़र जाएँ, पर प्रेम जवां ही रहता है
जड़ें अगर हों गहरी तो फिर प्रेम अमर कहलाता है
इसीलिए तो प्रेम का किस्सा कोई भुला न पाता है


कहर कोरोना, विनती मेरे मालिक तुम मेहर करो ना

हे ईश्वर आन पड़ा है कहर कोरोना
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करोना

भूल गए थे हम हस्ती तुम्हारी
मालिक संभाल ले अब कश्ती हमारी
अपने बच्चों को अब और सीख मत दो ना
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करोना

प्रकृति की वेदना हम क्यों ना सुन पाए
आज अपनों की चीखे हमें यह बताएं
बहुत बड़ा ऋण प्रकृति का है चुकाना
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करोना

रूह कांप जाती है आज ऐसी घड़ी है
फिर भी तेरी रहमत की आशा सबसे बड़ी है
ऐ विधाता विधि का यह लेख बदल दो ना
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करोना

मोल क्या है अपनों का आज तूने सिखाया
घर बंद कर दिल के दरवाजों को खुलवाया
मकसद तेरा था हम सोते हुए को जगाना
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करोना

आज हिंदू मुस्लिम सिख हो या इसाई
सबकी आंखें करुणा से हैं भर आई
कितना मुश्किल है अपनों से दूर जाना
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करोना

नतमस्तक हम देश के उन रख वालों के
खुद को भूल जो लगे हैं लड़ने महामारी से
इनके नाम जले दियो को मत बुझाना
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करोना

गाते पंछी, निर्मल नदिया वायु बिन जहर
बरसों के बाद आज देखी ऐसी सहर
साफ खुला आसमाँ कहे अब तो समझोना
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करोना

मानते हम हुई भूल हमसे बड़ी है
माफ बच्चों को करना जिम्मेदारी तेरी है
हाथ जोड़े इन बेबस बच्चों को क्षमा दो ना
विनती मेरे मालिक तुम महर करोना

हे ईश्वर आन पड़ा है कहर कोरोना
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करो ना


मिलते अगर हम तो क्या एहसास होता
मिलते अगर हम तो क्या एहसास होता
धड़कते दिल में क्या क्या ज़ज़्बात होता

बहते आँखों से आंसू, या लब खिलखिलाते
या दोनों के संगम का, एक साथ एहसास होता

करते ढेर सारी बातें, या चुप मुस्कुराते
चलते साथ साथ और हाथो में हाथ होता

रुकते फिर बहाने से, देखने को आखें
निगाहों ही निगाहों में, उमड़ता वो प्यार होता

बैठ कर कही, सीने से तेरे लग जाते
रुक जाए अब पल यही, ऐसा विचार होता

मिलते अगर हम तो क्या एहसास होता
धड़कते दिल में क्या क्या ज़ज़्बात होता

क्या प्यार में सोचा था, क्या प्यार में पाया हैं
क्या प्यार में सोचा था, क्या प्यार में पाया हैं,
तुझको मिलाने की चाहत में, खुद को मिटाया हैं,
इस पर भी कोई इलज़ाम, ना तुझ पर लगाया हैं
मेरी ही ख्वाईशो ने, आज मुझे अर्थी पर सुलाया हैं
ऐ जिंदगी ठहर जा जरा
ऐ जिंदगी ठहर जा जरा,
क्यूं पग-पग पर इम्तहान लेती है मेरा,
जर्रे-जर्रे से गुजर चल रहीं हूं तेरे साथ कि,
कल फिर निकलेगा नया सवेरा,
हर चुनौती से निपटने का हौंसला रखती हूं मैं तेरी,
बस अपने दस्तूरों को सहेजकर चल रही हूं इसलिए कम है रफ्तार मेरी।
गरीबी सबसे बड़ी सजा
खुशियों को हर कोई बाँट लेता हैं
पर किसी के गम को बांटना आसान नहीं होता

किसी जरुरतमंद की मदद करना इंसानियत हैं
ये किसी पर कोई एहसान नहीं होता

परिंदे भी लौट आते हैं आखिर में अपने बसेरे की ओर
पर कई इंसान ऐसे भी हैं जिनका कोई मकान नहीं होता

एक बच्चा सड़क के किनारे बैठ कुछ सोच रहा था
क्या गरीब बच्चो के दिल में कोई अरमान नहीं होता ?

ये बात सच हैं के हर एक का अपना अपना नसीब हैं
पर क्या कमजोर लोगो को देख मन कभी शर्मिंदा नहीं होता

आज के दौर में गरीबी से बड़ी कोई सजा नहीं
काश ऐसा हो के गरीबी का ही कोई नाम-o-निशान नहीं होता।

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मुझे तुमसे इश्क़ हो गया
खुदा से मिला रहमत है तू
मेरे लिए बहुत अहम् है तू
तेरे प्यार का मुझपे रंग चढ़ गया
मुझे तुमसे इश्क़ हो गया न न
करते कब हाँ कर बैठी
दिमाग का सुनते सुनते कब दिल की सुन ली
बस इतना पता है तुमसे इश्क़ हो गया
कब हुआ कैसे हुआ बस हाँ तुमसे इश्क़ हो गया
तेरे ख्यालों में रहती हूँ
खुद से ही तेरी बातें करती हूँ
तेरे नाम से ही मुस्कुरा देती हूँ
तुम्हें खबर भी नहीं और मैं तुम्ही से बेइंतहा प्यार करती हूँ
खुदा की मुझपे नेमत है तू
मेरी बरकत है तू
तुझसे दिल का राब्ता हो गया
मुझे तुमसे इश्क़ हो गया

हुआ था हमे भी प्यार कई बार
हुआ था हमे भी प्यार कई बार
लेकिन एक बार में एक से ही हुआ था इकरार
दिल तभी खोजा दूजा, जब मिला था प्यार में इंकार

जोड़ना था दिल हमे हर बार, लेकिन ये टूट ही जाता बार-बार
कभी उम्र ने इज़ाज़त नहीं दी तो कभी मजबूरियों ने मारा था
कसम उस खुदा की हरबार पूरी शिद्धत से हमने मोहब्बत निभाया था

हुआ था हमे भी प्यार कई बार;
कभी प्यार को हम समझ नहीं पाए
कभी प्यार ने हमे खुद ही खूब समझाया था;

चलती रही खेल यूँ ही मेरे और प्यार के बिच
कभी मै तो कभी प्यार ने मन बहलाया था
लेकिन दिल था मेरा जो अधूरा रहा हर बार

हुआ था हमे भी प्यार कई बार
चाहा उसको जो कभी मिल ही न पाया
जो मिला, उसको संभाल नहीं पाया

चलता रहा खेल यूँ ही मेरे और प्यार के बिच
कभी मै तो कभी प्यार ने मन बहलाया था
लेकिन दिल मेरा हमेशा प्यार को तरसता रहा

थी क्या कमी मुझमे जो दिल को कभी भी मैं जोड़ न पाया था
ईमानदार था कई बार फिर भी प्यार में धोखा ही खाया था

शायद मेरी गलती की सजा मिली दिल लगी का जुर्म हमने जो किया था.
दिल तो गवाया ही था जान भी गवाने का मौक़ा आया था.

हुआ था हमे भी प्यार कई बार
कभी हद से ज्यादा पाया तो कभी प्यार ने सिर्फ ललचाया था.

मैं भी इस देश की बेटी हु,
मुझे अब बस न्याय चाहिए
बचपन से ही लोगो ने समझाया …
पापा की इज्जत हूं,
बचा के रखना हर किसी ने बतलाया ,
हर शौक को खत्म कर मैंने,
सूट और 2 मीटर का दुप्पटे को अपनाया ,
बचपन से ही लोगो ने समझाया….

मां ने बोला दुपट्टा फैला के रखना ,
लड़के कुछ भी बोले,
लेकिन तुम कभी कुछ ना कहना ,
क्योंकि तुम बेटी हो,
तुम्हे तो ज़िन्दगी भर है सहना ,

बचपन से ही हर किसी का था यही कहना,,
बेटी हो बच के रहना ।
मैंने मां की बातो को ज़िन्दगी में उतार लिया ,
बड़ी सी कमीज़,
और तन को ढकने का पायजामा सिला लिया ,
देर रात तक बाहर ना रहना,
पापा की इज्जत हो ,
इन सब बातो को,
हर किसी ने मेरे सुबह का नाश्ता बना दिया ,
चाय में शक्कर के साथ इन बातो को भी मिला दिया ।।

एक दिन बाहर गई ….
फैलाकर दुपट्टा, बालों की सीधी चोटी,
क्योंकि मा ने बोला था
jeans, top, hairstyles ऐसी लडकिया safe नहीं होती ,
आगे बढी तो एहसास हुआ …
कोई मेरे पीछे हैं, मन घबराया, दिल जोर से चिल्लाया ,
लेकिन माँ की बाते याद आ गयी ,,,,
सूट, सलवार, सीधी चोटी,..और मैं लड़की ……
मुझे चिल्लाने का तो हक ही नहीं था ,
मेरे कदम रुक से गए थे..
मेरी साँस थम् सी गई थी,

बस उस वक्त पापा की इज्जत सामने आ खड़ी थी।।
ना रात थी , ना jeans था ….
यूँ दबोच मुझें नीचे गिराया , चिल्लाती भी तो कैसे??
माँ ने कभी चिल्लाना नहीं सिखाया ,
रुयी चिल्लायी कोई सुनने वाला नहीं था ,
मेरे जिस्म की नुमाईश, कोई ढकने वाला नहीं था ।।

लड़ी उस दम तक, जब तक पापा की इज्जत बचा सकती थी,
रोई गिड़गिड़ायी जब जब माँ की बाते याद आती थी,
हैवानियत जब हद से पार हो गई,
उस वक़्त मैं खुद से भी हार गई।।
जीना चाहती थी, बोलना चाहती थी,
अपने माँ के अंगना फिर से खेलना चाहती थी।।
बोलूँ भी तो किससे?? कौन मेरी बाते सुनेगा?
जीभ कटी मेरी, कौन मेरी आवाज़ बनेगा????

हड्डी तोड़े, पैर तोड़े इस दरिन्दगी को दुनिया से कौन कहेगा??
मेरे चरित्र पर अब उठे सवालो पर, अब कौन लड़ेगा??
फ़िर भी मैं लड़ना चाहती थी, इन दरिंदो से।।
लेकिन अब मैं अकेली हो गई थी आखे बंद कर,
न्याय की उम्मीद लिये मैं हमेशा के लिए सो गई थी।।।
लेकिन माँ से बहोत सारे सवाल अधूरे रह गए,
Jeans, top, सूट सलवार, रात दिन ??
माँ इनमे से अब क्या चुने ????

ना मुझे Candle March चाहिए,
ना ही Poster March चाहिए।।।
मैं भी इस देश की बेटी हु,
मुझे अब बस न्याय चाहिए ……..


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